
नाज़िश अंसारी
लखनऊ की तमाम सुनहरी तारीख चौक के दामन में सिमटी और नक़्खास की गलियों में बिखरी हैं। चौक का गोल दरवाजा अपनी सुरंग वाली गली: जिसमें चिकन की तमाम विविध नयी और पुरानी शैली के कपड़े, सोने चान्दी के जेवर से लेकर जूते, लेस-गोटे, और इत्र की भरमार है, में हार्दिक स्वागत करता है। साथ ही मिठाई, लस्सी, केसरिया दूध, दही-जलेबी, खस्ता, कचौड़ी पूरी जैसे तमाम शाकाहारी खानों के अलावा कवाब, बिरयानी, शीरमाल, पराठे, निहारी कुल्चे से मेज़बानी करता है।
नक़्खास बाजार लखनऊ का सबसे बड़ा बाज़ार होने के साथ ही कच्चे सामानों खासकर चिकनकारी का जखीरा है। चिकन की छपाई, रंगाई, कढ़ाई, पक्के पुल के नीचे गोमती में धुलाई, क़सब, आरी ज़रदोज़ी, ज़री के काम से लेकर लहंगा, गरारा, सूट, साड़ी, कबूतर, तोता, चिड़िया, देसी-जंगली मुर्गे•••• गरज़ कि लखनऊ को लखनऊवी बनाने की लवाज़मात का सारा ज़िम्मा इसी ने उठा रखा है।
यह शहर जितना सड़क पर है उससे ज़्यादा गलियों में आबाद है। रोटी वाली गली, बताशे वाली गली, जूते वाली गली, कन्घी वाली गली, शीशे वाली गली, फूलों वाली गली से लेकर नवाबों के बावर्चियों का बावर्ची टोला, भांडो का भाँडू मुहल्ला, मशाल बनाने वालों का मशालची टोला, आसिफुद्दौला की एक्स्ट्रा बेगमात/ रखनियों के लिये बसाया गया क़ैसरबाग, तवायफों का कश्मीरी मुहल्ला, कबूतर बाज़ी- पतँगबाज़ी को देखने के लिये बनाया गया मोती महल और इस जैसे तमाम नाम शहर की आराईश को कहते हैं।
नया लखनऊ– माने गोमती नगर माने एक्सटेंशन ऑफ लखनऊ। मायावती का बसाया, फैलाया, जयपुरी पत्थरों से सजाया सैकड़ों हाथियों वाले अंबेडकर पार्क के इर्द-गिर्द फैला। यही बसा है अखिलेश यादव का भी नया नवेला जनेश्वर मिश्र पार्क जहां दुबई की तर्ज पर रात में फव्वारे की फुहार रक़्स करती हैं।
यह vip area शहर का चमचमाता अमीर चेहरा है। स्मार्ट, मोडर्न बहोत से “वि-खंडों” का जंक्शन।
रेस्तराँ की भरमार यहां भी खूब है। बस ज़रा चायनीज़, इटैलियन, continetal पर तरजीह ज़्यादा है। इसके प्रोग्रेस्सिव होने का अंदाज़ा इस बात से लगा लीजिये कि जो औरतें, लड़कियाँ acid attack की वजह से अपना चेहरा/शरीर छिपाती फिरती हैं, शीरोज़ हैंगआउट रेस्तराँ उन्हें ससम्मान नौकरी देने के साथ उनमें जीने की इच्छा और आत्मविश्वास पैदा करता है।
उत्तर प्रदेश की राजनीती के तमाम समीकरणों का गठजोड़ बिठाता लखनऊ शहर के मुख्य में मुख्यमंत्री आवास होने के बावजूद विकास की राह तकता रहता है अमूमन। बुआ (मायावती) के अलावा बबुआ (अखिलेश यादव) ने पुराने लखनऊ में काफी उल्लेखनीय काम किये हैं।
पक्के पुल को रात में सतरंगी रोशनी वाला जुड़वा भाई याने एक और पक्का पुल दिया। घंटा घर का पुनरुद्धार करते हुए कुतुबमीनार की शक्ल वाले क्लॉक टावर को पार्क दिया। सतखंडा म्यूजियम का मेकओवर और विक्टोरियन स्ट्रीट लाईट का लगवाई। (मोदी लहर में ये तमाम काम भी काम ना आए।)