
हिसाम सिद्दीक़ी
यह इदारिया (संपादकीय) हम अपनी राय जाहिर करने के लिए नहीं, बल्कि एक सहाफी की हैसियत से चीफ जस्टिस आफ इण्डिया और सुप्रीम कोर्ट के बाकी तमाम जज साहबान को सच्ची खबर पहुंचाने की गरज से लिख रहे हैं। अगर यह भी चीफ जस्टिस और दीगर जज साहबान की नजर में प्रशांत भूषण के ट्वीट्स की तरह तौहीन-ए-अदालत के जुमरे (श्रेणी) में आता हो तो सारे अख्तियारात उन्हीं के हाथों में हैं सजा भी दे सकते हैं और इसे खबर मान कर अपनी मालूमात में इजाफा भी कर सकते हैं। चीफ साहब अब आप तस्लीम कर लीजिए कि गुजिश्ता चंद सालों में आप जज साहबान, सुप्रीम कोर्ट और मुल्क की अदलिया (न्यायपालिका) की साख बहुत ज्यादा गिरी है। इसके लिए जिम्मेदार कौन है यह पता लगाना आपका काम है।
सवाल सिर्फ प्रशांत भूषण को तौहीने अदालत का कुसूरवार करार देने का ही नहीं है। अस्ल सवाल यह है कि क्या जम्हूरी सिस्टम में किसी जज या चीफ जस्टिस से अगर गलती होती है या वह जानबूझ कर कोई गलत काम करता है, रिश्वत खाकर फैसला करता है तो उससे सवाल किया जा सकता है या नहीं, क्या जज साहबान कानून और संविद्दान से ऊपर हो गए हैं, वह भगवान हो गए हैं क्या अगर कोई वकील या आम आदमी जज साहबान की गलती पर उंगली उठाते हुए उन्हें आइना दिखाने की कोशिश करेगा तो ऐसा करने वाले को तौहीने अदालत के जुर्म में सजा दे दी जाएगी?
वैसे तो सुप्रीम कोर्ट और कई हाई कोर्टों के कुछ जज साहबान बेईमानी करते रहे हैं, रिश्ते निभाने या रिश्वत खाकर फैसले करते रहे हैं लेकिन ऐसे जजों की तादाद बहुत ही कम थी। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस भी फैसले करने में बेईमानी करते हैं और ऐसा करने में उन्हें कोई हिचक या शर्म महसूस नहीं होती यह सूरते हाल खुल कर उस वक्त से देश के सामने आई जब चीफ जस्टिस के ओहदे से रिटायर होने के फौरन बाद जस्टिस पी सदाशिवम को नरेन्द्र मोदी सरकार ने केरल का गवर्नर बनाया और वह खुशी-खुशी गवर्नर बन कर राज भवन पहुंच गए।
उसी वक्त यह बात आम लोगों में चर्चा का मौजूअ बन गई थी कि एक खास मुकदमे में सत्ताद्दारी पार्टी के हक में फैसला करने के इनाम की शक्ल में जस्टिस सदाशिवम को गवर्नरी का इनाम दिया गया है। कानून की जबान में जिसे हालाती सबूत (परिस्थितिजन्य साक्ष्य) कहा जाता है। वह सबूत जस्टिस सदाशिवम के खिलाफ ही जाते दिखे थे। दूसरा बड़ा मामला था मुंबई के स्पेशल जज लोया की मौत का उस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मौत की नए सिरे से जांच कराने तक की इजाजत नहीं दी, क्यों साहब! अगर जज लोया की मौत आपकी नजर में मुश्तबा (संदिग्द्द) नहीं थी लेकिन लोया की बीवी समेत बड़ी तादाद में लोगों को उस पर शक था तो जांच तो होने देते मौत गलत नहीं थी तो जांच रिपोर्ट में आ जाता कि उनकी मौत फितरी (स्वाभाविक) थी उसके लिए शक करने की कोई गुंजाइश नहीं है आपने तो जांच ही नहीं होने दी। आखिर यह पर्दादारी क्यों?
चीफ जस्टिस साहब लाकडाउन के बाद देश के लाखों मजदूर भूके प्यासे सैकड़ों किलोमीटर के सफर पर पैदल चलते रहे उनकी वीडियो देख कर हर किसी की आंखें नम होती रहीं आम लोगों ने अपनी-अपनी सकत के मुताबिक उनकी मदद भी की लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनपर सो-मोटो नोटिस नहीं लिया। मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा भी तो अदालत ने उन्हें मुफ्त में घर पहुंचाने का आर्डर सरकार को तब दिया जब तकरीबन तमाम मजदूर अपनी-अपनी मंजिल पर गिरते-पड़ते पहुंच चुके थे। सरकार ने उन्हें मुफ्त में घर नहीं पहुंचाया क्या दोबारा अदालत ने सरकार से जवाब तलब किया?
मजदूरों के मसले में जब सुप्रीम कोर्ट फैसला देने में महीनों का वक्त लगाता है और अरनब गोस्वामी जैसे बेईमान सहाफी की अपील पर चंद घंटों में ही उसी के हक में फैसला आ जाता है तो आम आदमी के दिल में शक पैदा होता है और इस शक की वजह से सुप्रीम कोर्ट की साख गिरती है। गुजिश्ता एक साल में कश्मीर में सरकारी ज्यादतियांं के खिलाफ जितने भी मामलात सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचे किसी में भी इंसाफ नहीं हुआ। सबसे ज्यादा अहम मामला तो बयासी (82) साल के साबिक मरकजी वजीर सैफुद्दीन सोज की नजरबंदी का आया उनकी बीवी की अपील पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी बयान को सच मानकर उन्हें इंसाफ नहीं दिया, अगले ही दिन मीडिया ने कश्मीर एडमिनिस्ट्रेशन और सुप्रीम कोर्ट दोनों की कलई खोलते हुए दुनिया को दिखा दिया कि वह नजरबंद हैं सरकार ने अदालत में झूट बोला है इस झूट के लिए अदालत ने कश्मीर सरकार के खिलाफ कोई कार्रवाई न करके साबित कर दिया कि या तो सुप्रीम कोर्ट भी मौजूदा सरकार से खौफजदा है या इंसाफ करने की आपमें सलाहियत ही नहीं बची है।
मिस्टर चीफ जस्टिस जनवरी 2018 में जस्टिस रंजन गोगोई, जे चेलमेश्वरम, कुरियन जोजफ और मदन बी लूकुर ने सड़क पर द्दरना देकर अंदेशा जाहिर किया था कि देश की जम्हूरियत (गणतन्त्र) खतरे में है। गोगोई चीफ जस्टिस बने तो उसी सरकार के गुलाम की तरह फैसला करने लगे जिस सरकार की वजह से उन्हें जम्हूरियत खतरे में दिख रही थी।
रिटायरमेंट के बाद उन्होने इनाम की शक्ल में राज्य सभा मेम्बरी कुबूल करके देश की अदलिया (न्यायपालिका) को शर्मसार किया। क्या उनकी इस हरकत पर सवाल नहीं उठाने चाहिए? चीफ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के बाकी जज साहबान को यह याद रखना चाहिए कि इज्जत अपनी ताकत का इस्तेमाल करके हासिल नही की जा सकती, इज्जत तब मिलती है जब लोग यह महसूस करें कि आपके फैसलों से कानून का राज कायम हो रहा है।
प्रशांत भूषण के अंग्र्रेजी में किए गए ट्वीट जिन्हें छः सौ से भी कम लोगों ने देखा उनसे आप इतना खौफजदा हो गए? किसी सियासतदां की लाखों की मोटरसाइकिल देखकर आपके अंदर का जैसा बच्चा जाग गया और आपने मास्क पहने बगैर उस पर बैठ कर तस्वीर खिंचवा कर सोशल मीडिया पर वायरल की, यह चीफ जस्टिस जैसे ओहदे पर बैठे शख्स के लिए किसी भी कीमत पर मुनासिब बात नहीं थी। प्रशांत भूषण ने उसपर ट्वीट करके एतराज जाहिर कर दिया तो वह मुजरिम हो गए।
सुप्रीम कोर्ट की नाक के नीचे दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस मुरलीद्दरन ने फरवरी के आखिर में कपिल मिश्रा समेत बीजेपी के कुछ दंगाइयों की वीडियो देखकर उनके खिलाफ फौरन रिपोर्ट दर्ज करने का आर्डर दिया तो आद्दी रात में उन्हें दिल्ली से हरियाणा हाई कोर्ट भेज दिया चीफ जस्टिस ने कोई नोटिस नहीं लिया उनका आर्डर छः महीनों बाद भी द्दूल खा रहा है। गुण्डों और दंगाइयों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई। जस्टिस मुरलीद्दरन का तबादला कर दिया गया, लेकिन आर्डर तो हाई कोर्ट की प्रापर्टी हो गया अगर उसपर अमल नहीं हुआ तो क्या सुप्रीम कोर्ट को खुद से नोटिस नहीं लेना चाहिए?
अगर आर्डर गलत था तो उसे रद्द ही कर देते। आप ही का आर्डर है कि अगर कोई लड़की जिन्सी इस्तेहसाल (यौन शोषण) की शिकायत करती है तो मुल्जिम को फौरन गिरफ्तार किया जाएगा लेकिन जब ऐसा इल्जाम चीफ जस्टिस आफ इण्डिया पर लगा तो कार्रवाई उसी लड़की के खिलाफ की गई जिसने शिकायत की थी और चीफ जस्टिस वह मुकदमा सुनने खुद ही बैठ गए जिस मुकदमे में वह मुल्जिम थे ऐसी बातों और हरकतों से साख भी गिरती है और सुप्रीम कोर्ट की तौहीन भी होती है लेकिन आप कह रहे हैं कि प्रशांत भूषण के ट्वीट से अदालत की तौहीन हुई है।
जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ और जस्टिस दीपक गुप्ता ने साफ कहा है कि अदम इत्तेफाक (असहमति) का गला घोंटना जम्हूरियत का कत्ल करने जैसा है। जस्टिस कुरियन जोजफ ने कहा था कि चीफ जस्टिस पर बाहरी दबाव था दिल्ली हाई कोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस ए पी शाह ने चंद दिन कब्ल कहा है कि अदलिया (न्यायपालिका) ने देश को मायूस किया है, सुप्रीम कोर्ट ने ईमानदारी से अपना रोल अदा नहीं किया है। नतीजा यह है कि देश चुनी हुई तानाशाही की जानिब चला गया है। चीफ साहब इस किस्म के सख्त बयान देने वाले जज साहबान के खिलाफ भी क्या कोई कार्रवाई करने की हिम्मत आपमें है?