
कासगंज की हिंसा और इसके बाद विशेष समुदाय के लोगों की गिरफ्तारियां बताती हैं कि न केवल कासगंज का दंगा सुनियोजित है बल्कि पुलिस की कार्रवाई भी पूरी तरह से एक तरफा रही। यही नहीं ख़ाकी के खौफ का यह आलम है कि हिंसा के बाद विशेष समुदाय के पीड़ित पुलिस स्टेशन जाने तक से डर रहे हैं। वे ख़ौफज़दा हैं। जो पीड़ित अपनी दुकानें और घर छोड़ कर गए वे अपने साथ हुए किसी तरह की हिंसा के बारे में बात भी नहीं करना चाहते। हाल ही में कासगंज दंगों की जांच करने गई यूनाइटेड अगेंस्ट हेट द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम की रिपोर्ट यह बताती है कि पुलिस ने एक ही समुदाय का साथ दिया। एक ही समुदाय को सुना। पूर्व आईजी एस आर दारापुरी ने कासगंज हिंसा के मामले में उत्तर प्रदेश पुलिस एक्शन पर सवालिया निशान लगाए हैं। इस मौक़े पर उन्होंने कहा कि पुलिस की कार्रवाही एक तरफ़ा रही।
यूनाइटेड अगेंस्ट हेट द्वारा गठित फैक्ट फाइंडिंग टीम ने पिछले दिनों कासगंज का दौरा किया था। इस दौरान उन्होंने बहुत से पीड़ितों से बात की। अपने अनुभवों और ग्राउंड रिपोर्ट को ज़ाहिर करने के लिए इस फैक्ट फाइंडिग टीम के सदस्य आज लखनऊ में प्रेस से मुखातिब हुए।
एस आर दारापुरी ने कहा कि पुलिस ने हिंसा का आधा दिन गुज़र जाने के बाद, 40 लोगों के खिलाफ नामजद रिपोर्ट दर्ज की और उसके बाद एक तरफ़ा कार्यवाही करते हुए, विशेष समुदाय के लोगों की ही गिरफ़्तारी की गईं हैं। उन्होंने कहा कि इस मसले को हिंदू मुसलमान एंगल से न देखे तो काफी हद तक राजनितिक साज़िश समझ आएगी।
चंदन की हत्या में संदिग्ध आरोपी सलीम व अन्य लोगों की गिरफ्तारी पर बोलते हुए पूर्व आईजी, एसआर दारापुरी ने कहा कि पुलिस ने पहले रॉड से सलीम के घर का दरवाज़ा तोडा, फिर वहां से एक लाइसेंसी बंदूक और एक ग़ैर लाइसेंसी देसी कट्टा बरामद करना बताया है। वह कहते हैं कि एक बात समझ में नहीं आती है कि जिसके पास लाइसेंसी बंदूक है वह आदमी कट्टा क्यों रखेगा।
दूसरी चीज़ और भी लोग जिनको गिरफ्तार किया गया है उनके पास भी, कट्टा और कारतूस मिलें हैं जबकी उन लोगों को पता था की पुलिस उनको ढूंढ रही है वह यह सब अपने क्यों रखेंगे। ऐसे कई सारे सवाल हैं जिनके जवाब अभी मिलना बाकी है। उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि उन्होंने पुलिस में 32 साल नौकरी की है और उन्हें पता है की कैसे पुलिस कट्टे और कारतूस बरामद करती है।
यूनाइटेड अगेंस्ट हेट के सदस्य व पत्रकार अलीमुल्लाह खान ने कहा कि कासगंज का पूरा मामला सुनियोजित तरीके से करवाया गया था वरना तिरंगा यात्रा में हथियार लाने की क्या ज़रुरत थी, जो हाल ही में आए वीडियो में साफ़ दिखाई दे रहा है। यही नहीं जो लोग इसे सांप्रदायिक हिंसा कह रहे हैं, उनको यह जान लेना चाहिए के अब्दुल हमीद चौक पर हिंदू मुस्लिम मिलकर गणतंत्र दिवस मनाने जा रहे थे और तिरंगा यात्रा के नाम पर बवाल कर रहे लोगों को स्थानीय हिंदू मुस्लिम लोगों ने ही रोका था। अल्लीमुल्लाह खान ने बताया कि 80-80 साल से यहां हिंदू-मुसलमान परिवार एक साथ रह रहे हैं। जिनमें भाईचारा है।
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष, मोहित पांडेय ने कहा कि इस दंगे का पैटर्न पहले के दंगो जैसा ही था। जहाँ बिना परमिशन एक यात्रा निकाल कर माहौल खराब किया जाता है और उसका ठीकरा दूसरे समुदाय पर फोड़ दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि इस मामले में मीडिया की भूमिका भी सकारात्मक नहीं रही। स्थानीय मीडिया की जिन्होंने अफवाहों को खबर बना दिया था। लेकिन किसी ने यह सवाल नहीं उठाए की तिरंगा यात्रा निकाल रहे लोगों के पास हथियारों का क्या काम था। यहां तक कि हिंदू मोहल्लों में कोई नुकसान नहीं हुआ जबकि मुस्लिम मोहल्लों में घरबार का बहुत नुकसान हुआ है। मंदिर सलमात हैं जबकि मुस्जदों को पहुंचा है।
यूनाइटेड अगेंस्ट हेट ने सूबे की योगी सरकार से मांग की है की कासगंज हिंसा की न्यायिक जांच होनी चाहिए और साथ ही दोषियों के खिलाफ निष्पक्ष हो कर कार्यवाही की जाए।