
कारवां में छपे निलीना एमएस द्वारा किए गए एक इंटरव्यू में राष्ट्र संघ के विशेष प्रतिवेदक डेविड के ने कहा है कि वह इस घटनाक्रम को बहुत अधिक असहज करने वाला और गंभीर चिंता का विषय मानते हैं। सरकार ने पिछले कई सालों में बार-बार कश्मीर में इंटरनेट पर रोक लगाई है, खासतौर पर आंदोलनों के समय।
इस बात से किसी को इनकार नहीं है कि कश्मीर में सार्वजनिक व्यवस्था और जीवन और अन्य मानव अधिकारों व मूल्यों को संरक्षित करने की जिम्मेदारी सरकार की है। निलीना के एक सवाल के जवाब में वह कहते हैं कि इंटरनेट पर रोक लगाना और हाल की परिस्थिति बेहद क्रूर है। सभी तरह के संचार को रोक देना कश्मीरी जनता की अभिव्यक्ति की आजादी में असामान्य हस्तक्षेप है। इसके अतिरिक्त ऐसा करना, कश्मीर में सरकार क्या कर रही है और वहां क्या हो रहा है जैसी बातों के जानने के भारतीय जनता के अधिकारों में भी हस्तक्षेप है। एक लोकतांत्रिक देश में ऐसा किया जाना असामान्य और अभूतपूर्व है।
डेविड के ने निलीना के एक और सवाल का जवाब देते हुए कहा कि इस तरह के दमनकारी उपायों से सरकार के प्रति कश्मीरियों में अलगाव पैदा होता है। इससे उनके अंदर शक्तिहीन होने और अपने भाग्य पर नियंत्रण न होने का एहसास जन्म लेता है। कश्मीर में शांति और मेलमिलाप के संबंध में इस तरह का कदम काउंटरप्रोडक्टिव होता है।
डेविड के कहते हैं कि मैं राष्ट्र संघ द्वारा नियुक्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर स्वतंत्र का विशेषज्ञ हूं। मैं केवल अपनी चिंता जाहिर कर सकता हूं और सरकार को अपनी नीति में परिवर्तन करने की अपील कर सकता हूं। इसका एक और मतलब है कि राष्ट्र संघ के अन्य सदस्य देश और संपूर्ण राष्ट्र संघ से कश्मीरियों के विरोध करने के अधिकार और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए दृढ़ता दिखाने की अपील कर सकता हूं। दुर्भाग्य की बात है कि राष्ट्र संघ इस मामले पर कुछ नहीं कर रहा है। मुझे इससे निराशा होती है। मैं राष्ट्रीय संघ से अपील करना जारी रखूंगा। राष्ट्र संघ पर मेरा कोई नियंत्रण नहीं। कम से कम उसकी राजनीतिक संस्थाओं, जैसे आम सभा, मानव अधिकार परिषद या सुरक्षा परिषद पर मेरा नियंत्रण नहीं है।
वह कहते हैं कि यदि हम संचार और इंटरनेट पर लगी रोक को देखते हैं तो यह लोकतांत्रिक अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़ा करता है, खासकर कश्मीर में। लेकिन मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूं कि यह केवल कश्मीर का सवाल नहीं है। यह भारत और सारी दुनिया के लिए है। यह कश्मीर के लोगों के साथ संपर्क करने और उनसे सूचना हासिल करने के अधिकारों के खिलाफ है।
(कारवां की हिंदी वेबसाइट में छपे डेविड के ने जो अपने इंटरव्यू में बोला , यह उसके कुछ अंश हैं)